आज़ादी के पचहत्तर साल बाद एक ऐतिहासिक पहल की घोषणा। २०२४ की राष्ट्रीय पशु गणना में घुमंतू पशुपालक समुदायों की पशुओं को भी शामिल किया जाएगा। इससे संभवतः हमें इस देश के घुमंतू पशुपालकों की खुद की संख्या का भी अंदाज़ा मिल सकता है। घुमंतू पशुपालक यानी पस्टोरलिस्ट ऐसे समुदाय हैं जो कि पारम्परिक तौर पर और नियमित रूप से हर वर्ष अपने पशु झुंडों के साथ बदलती ऋतुओं के अनुसार अनुकूल मौसम, चारा इत्यादि पाने के लिए पलायन करते हैं। भारत में ये समुदाय कुल सतरह प्रदेशों में फैले हैं, पर इनके बारे में किसी भी किस्म की आधिकारिक सांख्यिकीय जानकारी उपलब्ध नहीं है। कभी कहा जाता है कि इनकी कुल संख्या साढ़े तीन करोड़ है, कभी कि ये देश की ६ प्रतिशत आबादी हैं, पर इन आंकड़ों का कोई ठोस आधार नहीं है। हाल में 'लीग फॉर पस्टोरल पीपल्स एंड एण्डोजनस लाइवस्टॉक डेवलपमेंट' (एल पी पी) ने संख्या १.३ करोड़ बताया है। दरअसल, घुमंतू जीवनशैली पस्टोरलिस्ट पशुपालकों एवं उनके पशुओं दोनों की गणना करने में पेचीदा समस्याएँ पैदा करती है।
इन कठिनाईयों के बावजूद अब, आज़ादी की पचहत्तरवें वर्षगाँठ की ख़ुशी मनाने के उपरान्त, यदि पस्टोरल पशुओं की गणना के लिए ख़ास प्रावधान एवं इंतज़ामात की कल्पना की जा रही है, तो यह वाकई काबिल-इ-तारीफ़ है। साथ-साथ जब हम मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय में पस्टोरलिस्म के समर्थन हेतु नवनिर्मित ‘पस्टोरल सेल’ को इससे जोड़ते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि पस्टोरलिस्ट समुदायों के लिए, जो कि ज़माने से जाने-अनजाने में नज़रअंदाज़ किये गए हैं, राष्ट्रीय मुख्यधारा में योग्य स्थान बनाया जा रहा है। पस्टोरल पशु गणना जैसे उल्लेखनीय कार्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार अभी से कार्यरत है और पस्टोरलिस्ट समुदायों के प्रतिनिधियों से सलाह-मशवरा करते हुए सक्रिय रूप से योजनाएं बना रही है। समुदायों और उनसे जुड़ी सहायक संस्थाओं के साथ सरकार का यह संवाद कुछ समय से चलता आ रहा है और इसी ने आज के आशाजनक रुझानों का नींव डाला है। २८ अगस्त २०२३ को मंत्रालय द्वारा जारी किया गया पशु गणना की घोषणा करने वाला परिपत्र उससे सम्बंधित विषयों पर चर्चा करने के लिए कार्यगोष्ठियों का ज़िक्र भी करता है। परिपत्र हर प्रदेश में पाए जाने वाले पस्टोरलिस्ट समुदायों के नाम, उनके ऋतू-आधारित चराई प्रणालियाँ और पलायन रस्ते, सामाजिक और आर्थिक दशा इत्यादि पर जानकारी हासिल करने का इरादा भी बताता है। इसके लिए वह कई ग़ैर-सरकारी संस्थाओं ली मदद लेगी, जिसमें कच्छ में स्थापित सहजीवन नामक संस्था शामिल ह। सहजीवन के कार्यक्रम निर्देशक रमेश भट्टी के अनुसार यह संस्था देश में उपस्थित अनेक संस्थाओं के साथ संपर्क बनाये रखते हुए प्राथमिक जानकारी इकठ्ठा करेगा जो कि वह केंद्र सरकार को पेश करेगा।
सहजीवन २००५ से पस्टोरलिस्ट समुदायों के साथ काम कर रहा है और उसने भी सरकार के साथ इस संवाद को कई तरह से बढ़ावा दिया है। पिछले कुछ साल से सहजीवन के सेंटर फॉर पस्टोरलिस्म द्वारा कई प्रदेशों में आयोजित 'लिविंग लाइटली ' प्रदर्शनियां पस्टोरलिस्ट समुदायों और सरकार के बीच विविध प्रकार के कार्यगोष्ठी, संवाद और सलाह-मशवरा के मौके बनते आ रहे हैं। हाल में इसी श्रृंखला में कच्छ के भुज शहर में 'लिविंग एंड लर्निंग डिज़ाइन सेंटर' और सहजीवन के सेंटर फॉर पस्टोरलिस्म द्वारा मिलकर आयोजित शीतोत्सव में सतरह प्रदेशों से आये हुए १५० युवकों ने सरकारी कार्यकर्ताओं से पस्टोरलिस्म के भविष्य पर प्रभाव डालने वाले अलग-अलग विषयों के बारे में चर्चा की। उत्सव को सुशोभित करते मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के केंद्र मंत्री श्री परषोत्तम रुपाला ने पस्टोरल पशु गणना के महत्व को बताते हुए उसके सफलतापूर्वक आयोजन के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया। तत्पश्चात दिल्ली में २८ से ३० अप्रैल को तीन-दिवसीय कार्यगोष्ठी हुई जिसमें सरकारी कार्यकर्ताओं ने गणना की रूप-रेखा को विस्तृत किया और पस्टोरल समुदायों के प्रतिनिधियों के सवालों का जवाब दिया, साथ में कई आशंकाओं को दूर किया।
२०२६ संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'इंटरनेशनल यर ऑफ़ रेंजलैंड्स एंड पस्टोरलिस्म' घोषित कर दिया गया है और भारत इस कदम का एक हस्ताक्षरक है। इस सदर्भ में पस्टोरल पशु गणना घुमंतू पशुपालकों तथा उनके पशुओं के कल्याणकारी विकास के लिए नीतियों की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी । इसके अलावा यह शामलात का संधारणीय संचालन, भारत के पशु नस्ल विविधता को उत्पन्न करना और उसका संरक्षण करना, साथ में राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि, इन सभी में घुमंतू पशुपालक समुदायों का अद्वितीय योगदान पर प्रकाश डालेगी।
फोटो क्रेडिट:राज